( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )
हरि ! तुम्हरी महिमा न्यारीजी ,
मन लावन लागे नाता ॥ टेक ॥
तुम दास किये भव - पारा ,
उनका भव- भार उतारा ।
कर दया उन्हीको ताराजी ,
बस दिलमें योंहि सुहाता ॥ १ ॥
जब गजने नाम पुकारे ,
तुम दौर दौरकर तारे ।
द्रौपदिके कष्ट निवारेजी ,
वह अवसर दुखका जो था ॥ २ ॥
प्रल्हाद पिताने छेडा ,
तब तुमने दुखसे छोड़ा ।
उस- कारण खंबा तोडाजी ,
अपना निज - रूप बताता।।३ ।।
क्या कहें तुम्हारी माया ?
तुमने हर भक्त तराया ।
कहे तुकड्या ' जी ' ललचायाजी ,
अब छोड कहीं ना जाता ॥४ ॥
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